इस आर्टिकल में हम आपको Anger से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में बताएंगे और साथ ही ''how to control your Anger'' की भी चर्चा करेंगे।
हमें गुस्सा क्यों आता है? कुछ ऐसी चीजें हैं हमारे पूर्वाग्रह, विश्वास जो हमने पकड़ रखा है, जैसे ही कोई उससे अलग बात करता है तो हमें गुस्सा आता है क्यों सही कहा ना।
अगर इसको निजी जीवन के संदर्भ में देखें तो आप पाएंगे कि कोई व्यापारी जिसके साथ आप काम करते हैं और कभी कबार अगर गलती से ही उसके ₹10 का नुकसान होता है तो वह परिस्थिति को समझने के बजाय आप पर गुस्सा करता है या अगर आप एक व्यापारी है तो आप उस पर गुस्सा करते हैं।
अगर कोई ऐसा इंसान जिसके लिए वास्तव में आपने बहुत कुछ किया है और जब वह आपके साथ सही तरीके से पेश नहीं आए तो आपको गुस्सा आता है।
आइए जानते हैं कि आखिर गुस्से की जड़ क्या है?
सबसे पहली बात तो यह है कि आपने किसी वस्तु, व्यक्ति या अपने खुद के प्रति बहुत सी मजबूत धारणाएं बना रखी है। जैसे ही आपको अपनी उम्मीदों के अनुसार प्रतिक्रिया नहीं मिलती तो आप अपने अंदर चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं। पूर्वाग्रहों और पहले से किसी के प्रति अपने बिलिव के आधार पर आप अपने आप को जज करने लग जाते है।
गुस्से का दूसरा कारण है हमारी डिपेंडेंसी, डिपेंडेंसी का मतलब किसी व्यक्ति या संस्था के प्रति हमारा विश्वास या उस पर निर्भरता। जैसे किसी धर्म विशेष के प्रति हमारा विश्वास जैसे ही उस पर कोई प्रश्नचिह्न लगाता है, तो हमें गुस्सा आता है। चाहे सामने वाला तर्कपूर्ण बात कर रहा हो लेकिन हममे सुनने की क्षमता नहीं होती।
अपने गुस्से को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं या अपने आप को ऐसा बना लें कि गुस्सा आए ही ना क्या यह संभव है, जी हां संभव है। इसे संभव बनाने के लिए आपको कई चीजों को ध्यान से अब्ज़र्व करना होगा।
चलिए इसे अब्ज़र्व करते है,वही बात है कि हम जरूरत से ज्यादा डिपेंड होते जा रहे है, आपने कभी-कबार ध्यान दिया होगा कि कोई व्यक्ति डॉक्टर है और हम उसे उसके नाम से बुलाते हैं तो वह चिड़चिड़ा होकर बोलता है कि मैं डॉक्टर हू, मुझे डॉक्टर से नाम से बुलाए, मतलब क्या वो डॉक्टर है। डॉक्टर मतलब क्या उसके अंदर बहुत सारी मेडिकल इंफॉर्मेशन भर दी है और उसने उसके खालीपन को भर दिया है। अगर उसके माइंड मे फीड की हुई सारी इनफॉरमेशन को हम बाहर निकाल दें तो क्या वो डॉक्टर रह जाएगा, तो वह कौन है? ''एक शरीर'' क्या वह शरीर वो खुद है?
वह खुद कौन है? यह सवाल अपने आपसे पूछे कि, मैं कौन हूं?
आपने जो भी बाहर से अपने अंदर ग्रहण किया है चाहे वो तथ्य, सूचनाएं या बहुत सारी विचारधाराएं, अपने अंदर फीड कर रखी है। उन्हें किनारे रखकर सोचिए कि आप कौन हैं? तो आपको धीरे-धीरे अपने व्यवहार में यह नजर आएगा कि आप वह नहीं है, जो आप है। आपको एहसास होगा कि मैं जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता तो बस आपको इसे हर रोज दोहराना है।
जब भी आपको ऐसा लगे ऐसा लगे कि मेरी भावनाएं मेरे नियंत्रण से बाहर हो रही है तो बस तो आपको इसी प्रक्रिया को दोहराना है। यह सब आपको मानसिक रूप से करना है यानि सिर्फ मन में ही सोचना है जिससे कि आपका माइंड रिलैक्स हो जाए और आपके मन में स्थिरता आ सके जो शांति की पूरक है।
सबसे पहली बात तो यह है कि आपने किसी वस्तु, व्यक्ति या अपने खुद के प्रति बहुत सी मजबूत धारणाएं बना रखी है। जैसे ही आपको अपनी उम्मीदों के अनुसार प्रतिक्रिया नहीं मिलती तो आप अपने अंदर चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं। पूर्वाग्रहों और पहले से किसी के प्रति अपने बिलिव के आधार पर आप अपने आप को जज करने लग जाते है।
गुस्से का दूसरा कारण है हमारी डिपेंडेंसी, डिपेंडेंसी का मतलब किसी व्यक्ति या संस्था के प्रति हमारा विश्वास या उस पर निर्भरता। जैसे किसी धर्म विशेष के प्रति हमारा विश्वास जैसे ही उस पर कोई प्रश्नचिह्न लगाता है, तो हमें गुस्सा आता है। चाहे सामने वाला तर्कपूर्ण बात कर रहा हो लेकिन हममे सुनने की क्षमता नहीं होती।
अपने गुस्से को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं या अपने आप को ऐसा बना लें कि गुस्सा आए ही ना क्या यह संभव है, जी हां संभव है। इसे संभव बनाने के लिए आपको कई चीजों को ध्यान से अब्ज़र्व करना होगा।
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| अपने गुस्से को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं? |
चलिए इसे अब्ज़र्व करते है,वही बात है कि हम जरूरत से ज्यादा डिपेंड होते जा रहे है, आपने कभी-कबार ध्यान दिया होगा कि कोई व्यक्ति डॉक्टर है और हम उसे उसके नाम से बुलाते हैं तो वह चिड़चिड़ा होकर बोलता है कि मैं डॉक्टर हू, मुझे डॉक्टर से नाम से बुलाए, मतलब क्या वो डॉक्टर है। डॉक्टर मतलब क्या उसके अंदर बहुत सारी मेडिकल इंफॉर्मेशन भर दी है और उसने उसके खालीपन को भर दिया है। अगर उसके माइंड मे फीड की हुई सारी इनफॉरमेशन को हम बाहर निकाल दें तो क्या वो डॉक्टर रह जाएगा, तो वह कौन है? ''एक शरीर'' क्या वह शरीर वो खुद है?
वह खुद कौन है? यह सवाल अपने आपसे पूछे कि, मैं कौन हूं?
आपने जो भी बाहर से अपने अंदर ग्रहण किया है चाहे वो तथ्य, सूचनाएं या बहुत सारी विचारधाराएं, अपने अंदर फीड कर रखी है। उन्हें किनारे रखकर सोचिए कि आप कौन हैं? तो आपको धीरे-धीरे अपने व्यवहार में यह नजर आएगा कि आप वह नहीं है, जो आप है। आपको एहसास होगा कि मैं जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता तो बस आपको इसे हर रोज दोहराना है।
जब भी आपको ऐसा लगे ऐसा लगे कि मेरी भावनाएं मेरे नियंत्रण से बाहर हो रही है तो बस तो आपको इसी प्रक्रिया को दोहराना है। यह सब आपको मानसिक रूप से करना है यानि सिर्फ मन में ही सोचना है जिससे कि आपका माइंड रिलैक्स हो जाए और आपके मन में स्थिरता आ सके जो शांति की पूरक है।
जो चीज़ आपको चैलेंज करती है, वही आपको चेंज करती है
