गांधीजी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था, जहाँ पूर्ण सुशासन और पारदर्शिता हो। उन्होंने यंग इंडिया (19 सितंबर 1929) में लिखा, रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है। मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं; मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता।
अपने जीवन में विभिन्न राज व्यवस्थाओं के निर्माण, विकास, पतन और उनका भविष्य के बारे में गहन अध्ययन करने के बाद गांधी जी ने 'रामराज्य' के आदर्श को स्वीकार किया था।
20 मार्च 1930 को नवजीवन में लिखे अपने एक लेख में गांधीजी स्वय लिखते हैं कि स्वराज्य के कितने भी अर्थ क्यों न निकाले जाए, मैं भी उतने ही अर्थ क्यों न बताता रहा हूँ, तो भी मेरे नजदीक तो उसका एक ही अर्थ है-- और वह है 'रामराज्य'। यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं इसे धर्मराज्य कहूंगा।
अपने जीवन में विभिन्न राज व्यवस्थाओं के निर्माण, विकास, पतन और उनका भविष्य के बारे में गहन अध्ययन करने के बाद गांधी जी ने 'रामराज्य' के आदर्श को स्वीकार किया था।
20 मार्च 1930 को नवजीवन में लिखे अपने एक लेख में गांधीजी स्वय लिखते हैं कि स्वराज्य के कितने भी अर्थ क्यों न निकाले जाए, मैं भी उतने ही अर्थ क्यों न बताता रहा हूँ, तो भी मेरे नजदीक तो उसका एक ही अर्थ है-- और वह है 'रामराज्य'। यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं इसे धर्मराज्य कहूंगा।
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| गांधी जी का रामराज्य |
रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि इसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी सभी कार्य पूर्ण किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा। उनके इस विचार में लोकतंत्र के प्रति निष्ठा और वंचित वर्ग के उत्थान के प्रति राज्य की जिम्मेदारी स्पष्ट दिखाई देती है। अपने इस आलेख में गांधी आगे लिखते है कि यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पंडित की कोई आवश्यकता नहीं है---- हमे गुणों की आवश्यकता है, जिन गुणो की आवश्यकता वह तो सभी वर्गों के लोगों में स्त्री-पुरुष, बालक और सब धर्म के लोगों में आज भी मौजूद है........क्या सत्य, अहिंसा, अनुशासन और मर्यादा का पालन, वीरता जैसे गुणो का कौन परिचय नहीं दे सकता? इस प्रकार उनकी रामराज्य की अवधारणा किसी धार्मिक विश्वास का प्रतीक न होकर सम्पूर्ण समाज के कल्याण को समर्पित थी।
वे आगे लिखते है कि इसमे सता विकेंद्रीकृत होगी। प्रत्येक गांव में कुटीर उद्योग होंगे, जिसमें सभी व्यक्ति स्वावलंबी होकर आवश्यकता अनुसार उत्पादन करेंगे, ऐसे समाज में अंतिम व्यक्ति के साथ भी न्याय होगा।
गांधी जी ने राजनीति को धर्म, नैतिकता से संबंधित किया। उनके राज्य में धर्म विहीन राजनीति मृत्यु के समान है। ''राजनीति का धर्म होना चाहिए लेकिन धर्म पर राजनीति नही की जानी चाहिए '' गीता से प्रेरित होकर उन्होंने धर्म को कर्तव्य पालन के रूप में देखा।
गांधीजी के दृष्टिकोण से राज्य का स्वरूप➝
1॰ धार्मिक दृष्टिकोण➽ ईश्वरीय राज्य है।
2॰ आर्थिक दृष्टिकोण➽ मानव की सीमित आवश्यकताओं के आधार पर सादगी और सरलतापूर्ण जीवन की विकेंद्रीकृत व्यवस्थाएं हैं। लाभ के स्थान पर मानवीय आवश्यकताओं का आधार प्रमुख है।
3॰ सामाजिक दृष्टिकोण➽ बिना भेदभाव के परिवारिक स्वरूप का समाज होना चाहिए।
4॰ राजनीतिक दृष्टिकोण➽ इस विकेंद्रीकृत सत्ता में सभी प्रतिबंध नैतिक एव स्वनियंत्रित है किसी में भी जाति, धर्म, भाषा, मूल वंश इत्यादि की असमानता नहीं है। न्याय सहज एव सुलभ है और प्र्त्यक व्यक्ति स्वतंत्रता तरीके से जीवन यापन करते हैं तो गांधीजी का रामराज्य स्थापित हो जाएगा।
वर्तमान समय में व्याप्त विभिन्न समस्याओं का समाधान गंधिवाद के मूल में है चाहे वो जातिवाद हो,चाहे वो स्वच्छता हो,चाहे वो परमाणु अप्रसार इत्यादि हो,गांधी की इसी प्रासंगिकता को देखते हुए वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया..लेकिन गांधी और गांधीवाद एक ऐसी प्रेरणात्मक शक्ति है जिसे है जीकर समझा जा सकता है..शायद इसीलिए गांधी जी ने कहा था कि मेरा जीवन ही संदेश है।
आजादी का कोई अर्थ नहीं है यदि इसमें गलतियां करने की आजादी शामिल न हो।
