लोग डिप्रेशन में क्यों चले जाते है - Why do people go into depression

नमस्कार दोस्तों, आज हम अपनी जीवनशैली से जुड़े महत्वपूर्ण टॉपिक depression के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करेंगे और इसके साथ हम डिप्रेशन से संबंधित विभिन्न आयामों को समझेंगे ताकि हम इससे शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर डील कर सकें।

डिप्रेशन मतलब कि आप ऐसे विचार और भावनाएं पैदा कर रहे हैं, जो आप के खिलाफ काम कर रही है। ज्यादातर डिप्रेशन खुद अपने ही बनाए हुए होते हैं,  बहुत कम ही लोग वास्तव में किसी रोग के कारण डिप्रेशन में होते हैं, और कुछ नहीं कर सकते उनका डिप्रेशन अंदर से किसी आनुवांशिक कमजोरी या किसी अन्य कारण से होता है। अगर थोड़ा आगे बढ़े और समझे कि पागलपन और डिप्रेशन में क्या अंतर है तो जवाब यह है कि यह अंतर बहुत ही महीन है। जब आप गुस्सा होते हैं तब आप पागलपन और डिप्रेशन के अंतर को कम कर देते हैं ।


डिप्रेशन से हम इससे शारीरिक एव मानसिक स्तर पर कैसे डील कर सकते है ?
why do people take away in depression?

यदि आप अपने आप को अवसाद की अवस्था में डाल रहे हैं तो इसका अर्थ यही है, कि आप गलत दिशा में बहुत सारी तीव्र भावनाएं और विचार पैदा कर रहे हैं। अगर इसे किसी उदाहरण के तौर पर देखें, हर दिन 10 मिनट किसी पर जबरदस्त और तीव्र गुस्सा करके देखें आप देखेंगे कि अगले 3 महीनों में आप डिप्रेशन के रोगी हो जाएंगे। 

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु डिप्रेशन को इसी रूप में व्यक्त करते हैं। उनके अनुसार आपको बीमार रहने पर बहुत से प्रलोभन मिलते हैं। अपने बचपन से ही आपको घरवालों का दूसरों का अधिकतम ध्यान तभी मिलता था,  जब आप बीमार होते थे। जब आप तंदुरुस्त और खुश रहते थे,  तो वे आप पर इतना ध्यान नहीं देते थे। आप पर चिल्लाते थे। और आप ज़ोर से किलकारी मारकर अपनी खुशी प्रकट करते और जब आप बीमार पड़ते थे,  तो वे आपको पुचकारते,  यही नहीं आपके माता-पिता, पड़ोसी सबका ध्यान आपकी तरफ होता था।

हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि हमें यह समझना होगा कि जब कोई बच्चा बीमार हो तो उसके माता-पिता को उसे यह एहसास दिलाना चाहिए कि बीमार होना बुरा है। यह किसी का अपने ऊपर ध्यान केंद्रित करने के लिए कोई माध्यम नहीं है। इस तरह आप उसकी 70% दिन मानसिक बीमारियों को ठीक कर देंगे।


आइए इससे जुड़ा एक अन्य पहलू देखते हैं,  जिसे हम ओवरथिंकिंग[overthinking ] के नाम से जानते हैं।

अगर आप ज्यादा सोचते हैं और आपकी सोचने की दिशा और उसमें क्लेरिटी यानी स्पष्टता है, तो यह ओवरथिंकिंग बुरी नहीं है। आप इसे विभिन्न समस्याएं सुलझाने में आजमा सकते हैं। आप डिप्रेशन के शिकार नहीं होंगे। अब आपके मन मे सवाल आया होगा कि रॉन्ग थिंकिंग[wrong thinking]और राइट थिंकिंग[right thinking]का क्या मतलब है,  तो चलिए इसे समझते  है। 


Wrong Thinking आपके बिलीफ यानी विश्वास पर आधारित होती है । और Right Thinking रियलिटी यानी वास्तविकता पर आधारित होती है। तो आप जो भी सोच रहे हैं,  चाहे वह किसी व्यक्ति या किसी समस्या के बारे में  हो अगर आपके सोचने का आधार बिलीफ यानी विश्वास है, तो वह सही या गलत हो सकता है क्योंकि आपका विश्वास आपकी अपनी खुद धारणाओं से बनाया हुआ है। वह 99% गलत ही होता है जिसे हम रॉन्ग थिंकिंग कहते हैं। अगर आपके सोचने का आधार वास्तविकता है तो आपके दिमाग में कोई विवाद नहीं होगा तो आपका दिमाग सही निर्णय लेता है। तो बस आपको इसे बदलना है, आप किसी व्यक्ति या समस्या को उसी प्रकार देखिये जैसी वह है। उसके बारे मे रियलिटी के बेस पर सोचिए न कि बिलीफ के आधार पर।


आइए अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि इसे सम्मिलित रूप से यानी शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर कैसे डील कर सकते हैं। जब कोई व्यक्ति शारीरिक तौर पर डिप्रेशन का शिकार होता है तो डॉक्टर उसे खुशी के हार्मोन के लेवल को बढ़ाने वाली दवाइयां देते हैं। जो एक निश्चित समय के बाद मानसिक तौर पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। हमें हमारे फ्युल को ठीक करना होगा। हमारे कहने का मतलब है कि आपको fuel यानी भोजन ही नहीं, फ्युल का तात्पर्य पृथ्वी, आकाश, अग्नि, वायु और जल से है। चलिए इसे बिंदुवार समझते हैं, कि हम इनसे किस प्रकार फ्युल को ग्रहण कर सकते हैं।

1 पृथ्वी--आप जो भी खा रहे हैं, वो प्राकृतिक हो।

2 आकाश-- आपको अपने आप को सामान्य बंधनों से मुक्त करना होगा। खुद को समय देना होगा इसके लिए आपको किसी पहाड़ पर जाने की जरूरत नहीं है। आप अपनी छत पर जा सकते हैं। और कुछ मेडिटेशन वगैरह कर सकते हैं।

3 वायु-- आप किस प्रकार अपने अंदर ऑक्सीजन को ग्रहण कर रहे हैं। इससे फर्क पड़ता है।

 4 अग्नि-- अग्नि का मतलब यहाँ सूर्य से हैं, आप खुद को कितना प्राकृतिक बना पा रहे हैं।

 5 जल-- हमारे आस-पास का वातावरण और हम इससे कैसे पेश आते हैं। हमें इसे बदलना होगा।

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